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युवा और राष्ट्रवाद

February 9, 2021

युवा किसी भी समाज और राष्ट्र के कर्णधार हैं, वे उसके भावी निर्माता हैं। चाहे वह नेता या शासक के रूप में या डाक्टर इन्जीनियर, वैज्ञानिक, साहित्यकार व कलाकार के रूप में हो । इन सभी रूपों में उनके ऊपर अपनी सभ्यता, संस्कृति, कला एवम् ज्ञान की परम्पराओं को मानवीय संवेदनाओं के साथ आगे ले जाने का गहरा दायित्व होता है। पर इसके विपरीत अगर वही युवा वर्ग उन परम्परागत विरासतों का वाहक बनने से इन्कार कर दे तो निश्चिततः किसी भी राष्ट्र का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

युवा पीढ़ी ही राष्ट्र की निर्माता किसी देश की युवा पीढ़ी उस देश की रीढ़ होती है | भारत बहुरंगी संस्कृतियों के इंद्रधनुषी सौदर्य से संपूर्ण विविधता में एकता को प्रतिष्ठित करने वाला देश है। इस धरती में वह एक समय था जहां त्याग और बलिदान के एक नही अनेक दृष्टांत मौजूद हैं। त्याग का नितांत उदाहरण मर्यादा पुरूषोत्तम राम, त्याग और अहिंसा का संदेश देने वाले महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध की अमर वाणी, स्वामी विवेकानन्द, श्री कृष्ण का “कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदचनम” का संदेश कभी भुलाया नही जा सकता।

प्रत्येक देश का भविष्य निश्चित रूप से वहाँ की युवा पीढ़ी पर आधारित होता है। महादेवी वर्मा ने कहा है – ‘‘बलवान राष्ट्र वही होता है,जिसकी तरूणाई सबल होती है, जिसमें मृत्यु को वरण करने की क्षमता होती है, जिसमें भविष्य के सपने होते हैं और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, वही तरूणाई है।’’ अर्थात यह सत्य है कि किसी भी राष्ट्र और समाज की सारी ऊर्जा उसकी युवा शक्ति में निहित होती है। जो राष्ट्र अपनी युवा शक्ति का बेहतर और नैतिकता का इस्तेमाल करता है, बह आगे बढ़ता है और जो ऐसा नहीं कर पाता, वह अपनी तमाम अच्छाइयों, विशिष्टताओं के बावजूद उस दौड़ में पीछे रह जाता है जिसे हम निर्माण और विकास की दौड़ कह सकते हैं।